अमेजिंग फल के दाता एवं असामान्य स्थितियों के निर्माता ग्रह राहु-केतु ।। Amazing results and Unexpected Conditions Maker of planet Rahu-Ketu.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, राहू-केतु छाया ग्रह हैं, परन्तु ये राहु-केतु दोनों अत्यंत ही रहस्यात्मक ग्रह भी हैं । यह दोनों ऐसे ग्रह हैं, जो किसी भी घटना को अचानक से घटित करने का कार्य करते हैं । जातक को पता भी नहीं चलता है, कि आज उसकी क्या स्थिति है और कल क्या होने वाली है ? ऐसी स्थितियाँ जीवन में राहु-केतु के कारण ही निर्मित्त होती है ।।
इनकी दशा-अन्तर्दशा में अचानक जीवन में परिवर्तन होते देखा जा सकता है । किसी भी स्थिति में अचानक परिवर्तन कर देना राहु-केतु का ही काम होता है । अधिकांशत: परिस्थितियों में इन दोनों के कार्यो में कई समानतायें भी नजर आती हैं ।। मित्रों, जैसा की हमने उपर चर्चा की, कि राहु केतु दोनों छाया ग्रह है । इसीलिये 12 राशियों में से इन्हें किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है । फिर भी राहु बुध की कन्या राशि और केतु बृहस्पति की मीन राशि पर स्वराशि जैसा फल देता है ।।
इन राशियों पर राहु-केतु अपना स्वामित्व मानते है । राहु-केतु की ज्योतिषशास्त्र में उच्च-नीच राशियाँ अवश्य ही बतायी गयी है । राहु की उच्च राशि मिथुन है तो नीच राशि धनु मानी गई है । वहीँ केतु की उच्च राशि धनु और नीच राशि मिथुन मानी गई है ।। मित्रों, जैसा कि आप जानते हैं, कि अपने उच्च राशि पर कोई भी ग्रह पूर्ण बली होता है । वहीँ कोई भी ग्रह अपनी नीच राशि पर पूर्णतः निर्बल हो जाता है । हाँ यत्किंचित परिस्थितियों में कोई भी ग्रह अपनी नीच राशि पर होते हुये भी (किन्ही कारणों से उन नीच ग्रहों का नीचभंग हो जाता है तो) वो ग्रह शुभ फल देनेवाला भी हो जाता है ।।
राहु-केतु दोनों सदैव ही एक दूसरे से 180 अंश की दुरी पर रहते हैं । दोनों के साथ लगभग कई चीजें एक जैसी होती है । जैसे किसी भी कुंडली में राहु यदि उच्च का होगा तो केतु भी उच्च का ही होगा । राहु यदि नीच का होगा तो केतु भी नीच का ही होगा । राहु वर्गोत्तम होगा तो केतु भी वर्गोत्तम ही होता है, आदि-आदि ।। मित्रों, किसी भी कुंडली में राहु-केतु यदि नीच के हों तो इनका नीचभंग केवल बृहस्पति और बुध के कारण ही होता है । क्योंकि राहु बृहस्पति की धनु राशि पर नीच का और केतु बुध की मिथुन राशि पर नीच का होता है ।।
इसमें भी यदि इन दो प्रकार से राहु-केतु का नीचभंग होता है तो पूरी तरह से नीचभंग होगा और वो श्रेष्ठ फल भी देगा । जैसे जब धनु राशि में बैठे नीच के राहु को बृहस्पति अपनी 5वीं, 7वीं अथवा 9वीं अर्थात पूर्ण दृष्टि से देखें या राहु के साथ धनु राशि में बृहस्पति स्वयं बैठा हो ।। मित्रों, ठीक उसी तरह केतु का नीचभंग भी तभी श्रेष्ठ होगा जब केतु के साथ बुध मिथुन राशि में बैठा हो या बुध धनु राशि में बैठकर अपनी पूर्ण दृष्टि से अपने ही घर अर्थात मिथुन राशि में बैठे हुये नीच के केतु को देख रहा हो ।।
कई कुंडलियो में राहु-केतु की नीचभंग की स्थितियों में असमानतायें भी पायी जाती है । जैसे गुरु के कारण राहु का नीचभंग हो जाता है परन्तु केतु का आसानी से नीचभंग नहीं होता । इसका मुख्य कारण ये है, कि गुरु की 3पूर्ण दृष्टियां होती है 5, 7 और 9, वहीँ बुध की केवल एक सातवीं दृष्टि ही पूर्ण दृष्टि होती है ।। मित्रों, अधिकांश कुंडलियों में यह स्थिति देखी गई है गुरु की 3 पूर्ण दृष्टियों के कारण राहु के नीचभंग होने के स्थितियां अधिक बन जाती है । परन्तु बुध की केवल एक पूर्ण दृष्टि होने के कारण केतु के नीचभंग होने की स्थितियां कुण्डलियों में कम ही बन पाती है ।।
अब यदि किसी कुण्डली में बृहस्पति के कारण राहु का नीचभंग हो जाता है और केतु का नीचभंग बुध के साथ न बैठ पाने या दृष्टि न होने के कारण नीचभंग न हो पाये तो राहु और केतु दोनों के ही फल ठीक नहीं मिलते । जातक राहु-केतु की दशा-अन्तर्दशा में संघर्ष में ही रहता है । क्योंकि राहु-केतु दोनों एक दूसरे से सम-सप्तक होते है ।। मित्रों, इस कारण ये दोनों आपस में ही एक दूसरे को पूरी तरह से प्रभावित करते है । ऐसे में राहु का नीचभंग हो और केतु का नीचभंग न हो पाए तब भी नीच राशि में बैठे राहु-केतु एवं किसी एक ही का नीचभंग होने पर कोई एक शुभ फल अधिक नहीं दे पाते हैं ।।
इसी तरह केतु का नीचभंग बुध की युति या दृष्टि के कारण हो जाय और गुरु के कारण राहु का नीचभंग न हुआ हो तब भी स्थिति असामान्य जैसी ही रहती है । कुण्डली में जब एक साथ राहु का बृहस्पति से और केतु का बुध से नीचभंग होता है तब यह उच्च श्रेणी का नीचभंग होता है ।। मित्रों, तब जाकर पूरी तरह से राहु-केतु के नीचभंग होने के शुभ परिणाम जातक को मिलते हैं । राहु-केतु दोनों के नीचभंग होने से इनकी स्थिति एक जैसी ही सामान्य रहती है । जब किसी एक का नीचभंग हो तथा दूसरे का न हो पाया हो तो ऐसी स्थिति में जातक के जीवन में इनकी दशा-अन्तर्दशा में व्यक्ति की स्थितियाँ असामान्य ही होती है ।।
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संपर्क करें:- बालाजी ज्योतिष केन्द्र, गायत्री मंदिर के बाजु में, मेन रोड़, मन्दिर फलिया, आमली, सिलवासा ।।
।।। नारायण नारायण ।।।
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, राहू-केतु छाया ग्रह हैं, परन्तु ये राहु-केतु दोनों अत्यंत ही रहस्यात्मक ग्रह भी हैं । यह दोनों ऐसे ग्रह हैं, जो किसी भी घटना को अचानक से घटित करने का कार्य करते हैं । जातक को पता भी नहीं चलता है, कि आज उसकी क्या स्थिति है और कल क्या होने वाली है ? ऐसी स्थितियाँ जीवन में राहु-केतु के कारण ही निर्मित्त होती है ।।
इनकी दशा-अन्तर्दशा में अचानक जीवन में परिवर्तन होते देखा जा सकता है । किसी भी स्थिति में अचानक परिवर्तन कर देना राहु-केतु का ही काम होता है । अधिकांशत: परिस्थितियों में इन दोनों के कार्यो में कई समानतायें भी नजर आती हैं ।। मित्रों, जैसा की हमने उपर चर्चा की, कि राहु केतु दोनों छाया ग्रह है । इसीलिये 12 राशियों में से इन्हें किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है । फिर भी राहु बुध की कन्या राशि और केतु बृहस्पति की मीन राशि पर स्वराशि जैसा फल देता है ।।
इन राशियों पर राहु-केतु अपना स्वामित्व मानते है । राहु-केतु की ज्योतिषशास्त्र में उच्च-नीच राशियाँ अवश्य ही बतायी गयी है । राहु की उच्च राशि मिथुन है तो नीच राशि धनु मानी गई है । वहीँ केतु की उच्च राशि धनु और नीच राशि मिथुन मानी गई है ।। मित्रों, जैसा कि आप जानते हैं, कि अपने उच्च राशि पर कोई भी ग्रह पूर्ण बली होता है । वहीँ कोई भी ग्रह अपनी नीच राशि पर पूर्णतः निर्बल हो जाता है । हाँ यत्किंचित परिस्थितियों में कोई भी ग्रह अपनी नीच राशि पर होते हुये भी (किन्ही कारणों से उन नीच ग्रहों का नीचभंग हो जाता है तो) वो ग्रह शुभ फल देनेवाला भी हो जाता है ।।
राहु-केतु दोनों सदैव ही एक दूसरे से 180 अंश की दुरी पर रहते हैं । दोनों के साथ लगभग कई चीजें एक जैसी होती है । जैसे किसी भी कुंडली में राहु यदि उच्च का होगा तो केतु भी उच्च का ही होगा । राहु यदि नीच का होगा तो केतु भी नीच का ही होगा । राहु वर्गोत्तम होगा तो केतु भी वर्गोत्तम ही होता है, आदि-आदि ।। मित्रों, किसी भी कुंडली में राहु-केतु यदि नीच के हों तो इनका नीचभंग केवल बृहस्पति और बुध के कारण ही होता है । क्योंकि राहु बृहस्पति की धनु राशि पर नीच का और केतु बुध की मिथुन राशि पर नीच का होता है ।।
इसमें भी यदि इन दो प्रकार से राहु-केतु का नीचभंग होता है तो पूरी तरह से नीचभंग होगा और वो श्रेष्ठ फल भी देगा । जैसे जब धनु राशि में बैठे नीच के राहु को बृहस्पति अपनी 5वीं, 7वीं अथवा 9वीं अर्थात पूर्ण दृष्टि से देखें या राहु के साथ धनु राशि में बृहस्पति स्वयं बैठा हो ।। मित्रों, ठीक उसी तरह केतु का नीचभंग भी तभी श्रेष्ठ होगा जब केतु के साथ बुध मिथुन राशि में बैठा हो या बुध धनु राशि में बैठकर अपनी पूर्ण दृष्टि से अपने ही घर अर्थात मिथुन राशि में बैठे हुये नीच के केतु को देख रहा हो ।।
कई कुंडलियो में राहु-केतु की नीचभंग की स्थितियों में असमानतायें भी पायी जाती है । जैसे गुरु के कारण राहु का नीचभंग हो जाता है परन्तु केतु का आसानी से नीचभंग नहीं होता । इसका मुख्य कारण ये है, कि गुरु की 3पूर्ण दृष्टियां होती है 5, 7 और 9, वहीँ बुध की केवल एक सातवीं दृष्टि ही पूर्ण दृष्टि होती है ।। मित्रों, अधिकांश कुंडलियों में यह स्थिति देखी गई है गुरु की 3 पूर्ण दृष्टियों के कारण राहु के नीचभंग होने के स्थितियां अधिक बन जाती है । परन्तु बुध की केवल एक पूर्ण दृष्टि होने के कारण केतु के नीचभंग होने की स्थितियां कुण्डलियों में कम ही बन पाती है ।।
अब यदि किसी कुण्डली में बृहस्पति के कारण राहु का नीचभंग हो जाता है और केतु का नीचभंग बुध के साथ न बैठ पाने या दृष्टि न होने के कारण नीचभंग न हो पाये तो राहु और केतु दोनों के ही फल ठीक नहीं मिलते । जातक राहु-केतु की दशा-अन्तर्दशा में संघर्ष में ही रहता है । क्योंकि राहु-केतु दोनों एक दूसरे से सम-सप्तक होते है ।। मित्रों, इस कारण ये दोनों आपस में ही एक दूसरे को पूरी तरह से प्रभावित करते है । ऐसे में राहु का नीचभंग हो और केतु का नीचभंग न हो पाए तब भी नीच राशि में बैठे राहु-केतु एवं किसी एक ही का नीचभंग होने पर कोई एक शुभ फल अधिक नहीं दे पाते हैं ।।
इसी तरह केतु का नीचभंग बुध की युति या दृष्टि के कारण हो जाय और गुरु के कारण राहु का नीचभंग न हुआ हो तब भी स्थिति असामान्य जैसी ही रहती है । कुण्डली में जब एक साथ राहु का बृहस्पति से और केतु का बुध से नीचभंग होता है तब यह उच्च श्रेणी का नीचभंग होता है ।। मित्रों, तब जाकर पूरी तरह से राहु-केतु के नीचभंग होने के शुभ परिणाम जातक को मिलते हैं । राहु-केतु दोनों के नीचभंग होने से इनकी स्थिति एक जैसी ही सामान्य रहती है । जब किसी एक का नीचभंग हो तथा दूसरे का न हो पाया हो तो ऐसी स्थिति में जातक के जीवन में इनकी दशा-अन्तर्दशा में व्यक्ति की स्थितियाँ असामान्य ही होती है ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।
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