अथ श्रीसूर्यप्रातः स्मरणम् ।। Surya Pratah Smaranam.

अथ श्रीसूर्यप्रातः स्मरणम् ।।


प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं 
     रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि ।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं
     ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् ॥१॥

प्रातर्नमामि तरणिं तनुवाङ्मनोभि-
     र्ब्रह्मेन्द्रपूर्वकसुरैर्नुतमर्चितं च ।
वृष्टिप्रमोचनविनिग्रहहेतुभूतं
     त्रैलोक्यपालनपरं त्रिगुणात्मकं च ॥२॥

प्रातर्भजामि सवितारमनन्तशक्तिं
     पापौघशत्रुभयरोगहरं परं च ।
तं सर्वलोककलनात्मककालमूर्तिं
     गोकण्ठबन्धनविमोचनमादिदेवम् ॥३॥

श्लोकत्रयमिदं भानोः प्रातः प्रातः पठेत्तु यः ।
स सर्वव्याधिनिर्मुक्तः परं सुखमवाप्नुयात् ॥४॥

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।।। नारायण नारायण ।।।
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