राजयोग के प्रकार !!Types of Rajyoga
विपरीत राजयोग !!Vipreet Rajyoga
त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों में हों या युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है. इसे उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है कि अष्टमेश व्यय भाव या षष्ठ भाव में हो एवं षष्ठेश यदि अष्टम में, व्ययेश षष्ठ या अष्टम में हो तो इन त्रिक भावों के स्वामियों की युति दृष्टि अथवा परस्पर सम्बन्ध हो और दूसरे सम्बन्ध नहीं हों तो यह व्यक्ति को अत्यंत धनवान और खुशहाल बनाता है. इस योग में व्यक्ति महाराजाओं के समान सुख प्राप्त करता है. ज्योतिष ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है.
केन्द्र त्रिकोण राजयोग !!Kendra Trikon Rajyoga
कुण्डली में जब लग्नेश का सम्बन्ध केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों से होता है तो यह केन्द्र त्रिकोण सम्बन्ध कहलाता है. केन्द्र त्रिकोण में त्रिकोण लक्ष्मी का व केन्द्र विष्णु का स्वरूप होता है. यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में पाया जाता है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है. यह योग मान सम्मान, धन वैभव देने वाला होता है.
नीचभंग राजयोग !!Neechbhang Raj yoga
कुण्डली में जब कोई ग्रह नीच राशि का होता है और जिस भाव में वह होता है उस भाव का राशिश अगर उच्च राशि में हो अथवा लग्न से केन्द्र में उसकी स्थिति हो तब यह नीचभंग राजयोग कहा जाता है. उदाहरण के तौर बृहस्पति मकर राशि में नीच का होता है लेकिन मकर का स्वामी शनि उच्च में है तो यह भंग हो जाता है जिससे नीचभंग राजयोग बनता है.
रान्यपूज्यपति योग !!Rajya poojit Raj yoga
यह योग कन्या के संदर्भ में देखा जाता है. यह योग जिस कन्या की कुण्डली में होता है उसका पति सम्पन्न एवं समाज में सम्मानित होता है. यह योग तब बनता है जब कन्या के जन्म के समय सप्तम भाव में शुभग्रह की सम राशि हो व शुभ ग्रहों से युक्त हो अथवा दृष्ट हो.
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।।। नारायण नारायण ।।।
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