जानिये हाथ की रेखाओ को और उनका सम्पूर्न रहस्य!! Jaaniye Haath ki Rekhao aur Unka Sampoorna Rahsya


जानिये हाथ की रेखाओ को और उनका सम्पूर्न रहस्य!!

सदियों से मनुष्य अपने भविष्य के बारे में जानने को उत्सुक रहा है  उसने स्वयं को संतुष्ट करने के लिए तथा भविष्य की घटनाओं के बारें में पता लगाने के लिए फलित ज्योतिष के आधार पर विभिन्न शाखाओं का निर्माण किया जैसे ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्र, और अंक ज्योतिष ज्ञान हस्त रेखा ज्ञान, विज्ञान की एक प्राचीन शाखा है 

जो हाथों की रेखाओं के आधार पर व्यक्ति के चरित्र एवं उसके भविष्य का आकलन करती है. यह कैरोमंसी के नाम से भी जाना जाता है. इसका अभ्यास किसी भी संस्कृति, क्षेत्र और धर्म तक सीमित नहीं है. यह दुनिया भर में विविध सांस्कृतिक विविधताओं के साथ पाया जाता है 

इसलिए, हाथ की रेखाओं तथा हाथ की अनेक विशेषताओं के विश्लेषण के लिए विभिन्न संस्करण प्राप्त हैं. जो व्यक्ति इस कला के अभ्यास में लगे होते हैं उन्हें हस्तरेखाविद्, हाथ पढ़ने वाला , हाथ पाठक, हस्त विश्लेषक या हस्तरेखा शास्त्री के रूप में जाना जाता है 

हस्तरेखा विज्ञान ग्रीस में 348 से 322 ईसा पूर्व के मध्य में अस्तित्व में आया. अरस्तू को 384-322 ईसा पूर्व में के बीच ग्रीस देवता हर्मीस से ग्रंथ प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने सिकंदर महान को भेंट स्वरूप प्रदान किया 

इस महान शासक ने इस कला में एक गहरी रुचि दिखाई और अपने अधिकारियों के हाथों की रेखाओं का विश्लेषण किया. हिप्पोक्रेट्स ने अपने रोगियों के रोगों के निदान के लिए हस्तरेखा शास्त्र का इस्तेमाल किया 

यह कला भारत, तिब्बत, चीन, फारस, मिस्र और ग्रीस से यूरोप के अन्य देशों में फैली. कई प्राचीन समुदायों जैसे सुमेर निवासी, तिब्बतियों, इब्रियों,कसदियों, मिस्र, और फारसियों ने इस कला के लिए अपना उल्लेखनीय योगदान प्रदान किया 

कई बुद्धिजीवियों का तर्क है कि हस्तकला का जन्म या कहें शुरुआत भारत में हुई थी. महर्षि वाल्मीकि, जो एक महान ऋषि हुए उन्होंने पुरुष हस्तरेखा शास्त्र पर एक पुस्तक की रचना की जिसमें 567 पैराग्राफ शामिल थे 

उनका यह ज्ञान भारत से होते हुए चीन, तिब्बत, मिस्र, और फारस तक फैला. इसलिए, हस्तकला में अरस्तू, सिकंदर महान हिप्पोक्रेट्स, और कीरो जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति हुए  कीरो ने हस्तरेखा शास्त्र पर कई पुस्तकें लिखीं और उन्हें हस्तकला के पिता के रूप में जाना जाता है 

हस्तरेखा विज्ञान के विभिन्न रूपों में व्याख्या के असंख्य संस्करण रहे हैं. लेकिन, कुछ कदम दुनिया भर में सभी पीछा कर रहे हैं  एक अच्छे हस्तरेखा शास्त्री को हाथों की प्रत्येक रेखा (हृदय रेखा, जीवन रेखा आदि), हर पर्वत, उभार का, रेखाओं का मिलान व कटाव एवं उंगलियों के आकार, उनकी मिलती जुलती बनावट तथा हथेली की त्वचा के रंग आदि का विश्लेषण करना चाहिए 

हस्तरेखा शास्त्र और उन्हें पढ़ने के प्रकार के आधार पर एक हस्तरेखाविद् दोनो हाथों का विश्लेषण करता है. दाएँ हाथ से कार्य करने वाले एक व्यक्ति का बायां हाथ ‘जन्म हाथ’ कहा जाता है जो व्यक्ति के अवचेतन मन तथा विरासत में प्राप्त विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है 

और उस व्यक्ति के दाहिने हाथ से चेतन मन का जो अपनी पहचान, योग्यता और उसके ग्रहण करने की क्षमता जैसी विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है. बाएँ हाथ के व्यक्ति के लिए यह स्थिति विपरीत रहेगी 

हस्तरेखा शास्त्र में हथेली की रेखाओं का विशेष महत्व है। इसमे सम्मलित लक्षण जैसे क्रास, सितारे, वर्गों और अर्धचन्द्राकार का अध्ययन हथेली द्वारा किया जाता है।

यह रेखाएं व्यक्ति का भविष्य, शुभ संकेत और अशुभ संकेत दर्शाती हैं। इन संकेतो का निर्माण व्यक्ति के विचार और कर्मों पर भी निर्भर होता है। यह रेखाएं अपने नाम के अनुसार परिणाम देती हैं। हस्तरेखाविद् द्वारा हस्तरेखाएं जो विश्व भर मे प्रचलित है उनका विवरण नीचे किया जा रहा है।

आमतौर पर मस्तिष्क रेखा का निरुपण हाथ के आकार पर भी निर्भर करता है। यहां पर प्रमुख छह प्रकार के हाथ जैसे मौलिक हाथ, वर्गाकार हाथ, चपटा हाथ, दार्शनिक हाथ, शंक्वाकर  हाथ, मानसिक हाथ द्वारा विवेचन किया जा रहा है।


 मस्तिष्क रेखा और विभिन्न प्रकार के हाथ के संबंध में विवरण नीचे प्रदान किया गया है –

मौलिक हाथ:  मौलिक हाथ में मस्तिष्क रेखा का झुकाव चंद्र पर्वत की ओर हो तो व्यक्ति कल्पनाशील और अंधविश्वासी प्रवृत्ति का होता है।

वर्गाकार हाथ:  वर्गाकार हाथ मे यदि मस्तिष्क रेखा झुकाव लिये हो तो व्यक्ति का चरित्र कल्पनाशील परन्तु व्यावहारिकता पर निर्भर करता है। यदि बाकी हाथों मे भी मस्तिष्क रेखा झुकाव लिये हो तो व्यक्ति पूर्णतः सनकी होता है।

चपटा हाथ : चपटे हाथ मे मस्तिष्क रेखा अत्यधिक झुकाव लिये हो तो व्यक्ति बेचैन, चिड़चिड़ा और असंतुष्ट स्वभाव  वाला होता है।

दार्शनिक हाथ: यदि दार्शनिक हाथ में मस्तिष्क रेखा बिल्कुल सीधी हो तो व्यक्ति विवेकपूर्ण, विश्लेषणात्मक, तर्कसंगत और उन्मादी होता है, उसे कर्मो का ज्ञान होता है और अपने साथियों के कार्य को पूर्ण करता है।

शंक्वाकार हाथ : शंक्वाकार हाथ मे मस्तिष्क रेखा का चंद्र पर्वत पर निरंतर झुकाव हो तो व्यक्ति का भावात्मक झुकाव जैसे रोमांस, परोपकार और सहानुभूति पर होता है, इस हाथ की विशेषताएं वर्गाकार हाथ के विपरीत है।

मानसिक हाथ : मानसिक हाथ में स्तिष्क रेखा नीचे की ओर जाते हुये हो तो व्यक्त अत्यंत काल्पनिक और पागल होता है, ऐसा व्यक्ति व्यक्ति सनकी होता है, लेकिन समय बीतने के साथ वह  व्यावहारिक हो जाता है।

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।।। नारायण नारायण ।।।
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